एक बार की बात है, एक सुंदर और खुशहाल गांव में बच्चों की हँसी-खुशी गूंजती रहती थी। गांव में एक बहुत ही प्यारा सा गुब्बारा बेचने वाला था, जिसका नाम चंचल था। चंचल का गुब्बारा बाजार बहुत ही रंग-बिरंगा था। गुब्बारे की दुकान पर विभिन्न रंगों के गुब्बारे लटके हुए थे—लाल, नीला, हरा, पीला, और गुलाबी। बच्चे हमेशा चंचल की दुकान के सामने खुश होकर खड़े रहते थे, क्योंकि हर कोई एक सुंदर गुब्बारे की ख्वाहिश करता था।
एक दिन, गांव में एक बड़ा मेला लगा। मेले में हर प्रकार की गतिविधियाँ और खेल-खिलौने थे। चंचल ने सोचा कि इस अवसर का फायदा उठाते हुए मेले में अपने गुब्बारे बेचने जाएगा। उसने अपने सभी गुब्बारे मेले में ले जाने का फैसला किया, ताकि बच्चे उसकी दुकान पर आ सकें और अपने पसंदीदा रंग का गुब्बारा खरीद सकें।
मेले के दिन, चंचल अपने रंग-बिरंगे गुब्बारे लेकर मेले में पहुँचा। बच्चों ने देखा और खुशी से चिल्ला उठे। चंचल ने अपने गुब्बारे हवा में उड़ा दिए, जिससे वे हवा में झूलने लगे और बहुत ही आकर्षक नजर आने लगे। बच्चे खुशी-खुशी अपने पसंदीदा रंग का गुब्बारा खरीदने लगे।
लेकिन एक बच्चा ऐसा भी था जो बहुत निराश और उदास नजर आ रहा था। उसका नाम मोहन था। मोहन की आंखों में एक विशेष चमक थी, लेकिन उसकी चेहरे की चमक गायब थी। चंचल ने मोहन को देखा और उससे पूछा, “बच्चे, तुम इतने उदास क्यों हो?”
इस बात पर मोहन ने कहा कि मैं इसलिए गुब्बारा नहीं खरीद सकता क्युकी मेरे पास गुब्बारा खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं।
चंचल को मोहन की बात सुनकर बहुत दुख हुआ। उसने सोचा कि शायद उसे मोहन की मदद करनी चाहिए। चंचल ने सोचा, “अगर मैं मोहन को एक गुब्बारा दे दूँ, तो शायद उसकी उदासी दूर हो जाए।”
चंचल ने अपने सबसे बड़े और सुंदर गुब्बारे को मोहन की ओर बढ़ाया और कहा, “यह गुब्बारा तुम्हारे लिए है। तुम्हारी खुशी मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है।”
मोहन की आंखें खुशी से चमक उठीं। उसने चंचल का धन्यवाद किया और खुशी-खुशी गुब्बारे को लेकर मेले में खेलने चला गया। चंचल ने देखा कि मोहन का चेहरा अब खुशहाल था और उसके साथ खेलते हुए वह बहुत खुश लग रहा था।
लेकिन उस दिन एक और घटना घटी। मेले के समाप्त होने के बाद, चंचल ने देखा कि उसकी दुकान पर एक गुब्बारा भी नहीं बचा था। वह सोचने लगा कि आज के दिन उसने कितने गुब्बारे बेचे और मोहन की खुशी देखी, तो उसे बहुत अच्छा लगा। लेकिन उसके मन में एक सवाल था—क्या गुब्बारे का रंग सच में किसी की खुशी बढ़ा सकता है?
चंचल ने उस रात सोने से पहले एक सपना देखा। सपना था कि गुब्बारे का रंग खुद में कोई जादू नहीं रखता, बल्कि उस रंग की खुशी और आनंद वह खुशियों की अनुभूति है जो गुब्बारे के मालिक को मिलती है। सुबह उठते ही, चंचल ने यह तय किया कि वह अब अपनी दुकान में केवल गुब्बारे नहीं बेचेगा, बल्कि हर बच्चे को खुशी देने की कोशिश करेगा, चाहे वह कितना भी छोटा क्यों न हो।
अगले दिन, चंचल ने अपनी दुकान पर एक नया नारा लगवाया: “खुशियों का रंग हर किसी के दिल में छुपा होता है।” उसने यह भी तय किया कि वह हर बच्चे को खुशी देने के लिए एक-एक गुब्बारा मुफ्त में देगा, अगर वे खुश रहना चाहते हैं।
इस नई पहल के बाद, चंचल की दुकान पर बहुत से बच्चे आने लगे। चंचल ने हर बच्चे को उनका पसंदीदा रंग का गुब्बारा दिया और साथ ही, उन्हें कुछ अच्छे सलाह भी दी कि वे हमेशा खुश रहें और दूसरों की मदद करें। बच्चे चंचल की दुकान से बहुत खुश होकर लौटे, और चंचल को भी बहुत खुशी हुई कि उसने किसी के चेहरे पर मुस्कान देखी।
कुछ समय बाद, गांव में एक अन्य बड़ा मेला लगा। इस बार, चंचल ने मेले में भी अपनी नई सोच का प्रचार किया। उसने मेले में एक खास स्टॉल लगाया जिसमें बच्चों को मुफ्त में गुब्बारे देने के साथ-साथ, उनके जीवन में खुशियों के रंग भरने की बात की।
यह देखकर सभी गांव वाले बहुत खुश हुए और चंचल की सराहना करने लगे। उन्होंने देखा कि गुब्बारे का रंग किसी की खुशी बढ़ा सकता है, लेकिन असली खुशी वह है जो हम एक-दूसरे के साथ साझा करते हैं और अपने जीवन में खुशियों के रंग भरते हैं।
इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि खुशी का वास्तविक रंग दिल से आता है, न कि केवल बाहरी चीजों से। चंचल की कहानी ने यह साबित किया कि सच्ची खुशी तब होती है जब हम दूसरों के चेहरे पर मुस्कान लाने का प्रयास करते हैं और अपने जीवन में खुशियों के रंग भरते हैं। हमें चाहिए कि हम अपने छोटे-छोटे कार्यों के माध्यम से दूसरों को खुश रखें और उनकी मदद करें, क्योंकि यही असली खुशी का रंग है।
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