एक समय की बात है, एक घने जंगल में एक शक्तिशाली हाथी और एक सुंदर हिरण रहते थे। हाथी का नाम बलराम था और हिरण का नाम मोहन था। दोनों एक-दूसरे के अच्छे दोस्त थे, लेकिन उनके स्वभाव में बहुत फर्क था। बलराम अपनी शक्ति और आकार के लिए जाना जाता था, जबकि मोहन अपनी नाजुकता और तेज़ी के लिए प्रसिद्ध था।
एक दिन, जंगल में एक अनहोनी घटना घटित हुई। एक भयंकर सूखा पड़ने लगा और जंगल का हर कोना सूख गया। झीलें और नदियाँ धीरे-धीरे सूखने लगीं, पेड़-पौधे मुरझाने लगे और जंगल में पानी की भारी कमी हो गई। सभी जानवर परेशान थे और पानी के लिए एक उपाय की खोज कर रहे थे।
बलराम और मोहन भी इस समस्या को लेकर चिंतित थे। उन्होंने सोचा कि जंगल के सभी जानवरों को एक साथ मिलकर इस समस्या का समाधान ढूंढना चाहिए।
मोहन ने सुझाव दिया, “हमें जंगल के बाहर जाकर पानी की खोज करनी चाहिए। शायद हमें कहीं पानी मिल सके।” बलराम ने मोहन की बात मानी और दोनों ने मिलकर जंगल के बाहर की ओर यात्रा शुरू की।
जंगल के बाहर कई दिन यात्रा करने के बाद, बलराम और मोहन एक बड़े और भव्य नदी के किनारे पहुंचे। यह नदी बहुत ही गहरी और विस्तृत थी, और इसका पानी साफ और ताजे था। दोनों ने देखा कि नदी के किनारे कुछ जानवर पानी पी रहे थे और राहत की सांस ले रहे थे।
बलराम ने मोहन से कहा, “हमने बहुत कठिन यात्रा की है, लेकिन अब हमें यहाँ से पानी ले जाकर जंगल में सभी जानवरों की मदद करनी चाहिए।” मोहन ने सहमति जताई और दोनों ने नदी से पानी भरने के लिए एक योजना बनाई।
बलराम ने अपनी बड़ी सूंड का उपयोग करके पानी को बड़ी-बड़ी बाल्टियों में भरने की कोशिश की, जबकि मोहन ने अपनी तेज़ी का उपयोग करके पानी को जंगल में ले जाने का काम संभाला। दोनों ने मिलकर एक शानदार व्यवस्था बनाई, जिसमें बलराम पानी भरने और मोहन उसे जंगल में ले जाने का काम कर रहा था।
जब वे पानी लेकर जंगल में लौटे, तो सभी जानवरों ने उनका स्वागत किया और उनकी मदद की सराहना की। जानवरों ने पानी की कमी से राहत महसूस की और जंगल में एक बार फिर से जीवन लौट आया।
लेकिन फिर से एक और समस्या उत्पन्न हुई। कुछ दिनों बाद, जंगल में एक गहरी और खतरनाक दरार बन गई। यह दरार इतनी बड़ी थी कि जानवरों का जंगल के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में जाना मुश्किल हो गया। दरार की चौड़ाई और गहराई को देखकर जानवर बहुत चिंतित हो गए कि अब कैसे एक दूसरे की मदद करेंगे।
बलराम और मोहन ने सोचा कि वे इस समस्या का समाधान भी मिलकर निकाल सकते हैं। बलराम ने अपनी विशाल शक्ति का उपयोग करने का प्रस्ताव दिया और मोहन ने अपनी तेज़ी और बुद्धिमानी का।
मोहन ने सुझाव दिया, “बलराम, तुम अपनी ताकत से दरार के किनारों को मजबूत कर दो ताकि यह और न बढ़े। मैं इसका माप लेकर उसकी गहराई और चौड़ाई को समझने की कोशिश करूंगा।”
बलराम ने मोहन की बात मानी और अपनी पूरी ताकत से दरार के किनारे को मजबूत करने का काम शुरू किया। उसने अपनी बड़ी सूंड का उपयोग करके मिट्टी और पत्थरों को एक जगह इकट्ठा किया और दरार को भरने की कोशिश की।
इस बीच, मोहन ने दरार की गहराई और चौड़ाई को मापकर देखा और उसने समझाया कि दरार को पूरी तरह से भरने के लिए एक विशेष व्यवस्था की आवश्यकता होगी। मोहन ने बलराम को बताया, “हमें दरार को भरने के लिए बड़े पत्थर और लकड़ी के टुकड़े इकट्ठा करने होंगे। हम इनका उपयोग करके दरार को भर सकते हैं।”
दोनों ने मिलकर जंगल के अन्य जानवरों से मदद मांगी। जानवरों ने बड़े पत्थर, लकड़ी के टुकड़े और मिट्टी इकट्ठा करने में उनकी मदद की। बलराम ने अपनी ताकत का उपयोग करके बड़े-बड़े पत्थरों को दरार में डालना शुरू किया और मोहन ने छोटे-छोटे टुकड़े और मिट्टी डालने का काम संभाला।
धैर्य और मेहनत से, बलराम और मोहन ने दरार को लगभग भर दिया। जानवरों ने देखा कि दरार को भरने की दिशा में काम चल रहा था और उन्होंने बलराम और मोहन की मदद की। कुछ दिनों में दरार पूरी तरह से भर गई और सभी जानवर खुशी से जंगल के सभी हिस्सों में आ-जा सकते थे।
जंगल में शांति और समृद्धि लौट आई। जानवरों ने बलराम और मोहन की बहुत सराहना की और उन्हें जंगल के नायकों के रूप में मान्यता दी। बलराम और मोहन ने एक दूसरे की ताकत और क्षमताओं की सराहना की और समझा कि मिलकर काम करने से बड़ी समस्याओं का समाधान निकल सकता है।
इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि जब हम मिलकर काम करते हैं और अपनी ताकत और क्षमताओं का सही उपयोग करते हैं, तो हम बड़ी से बड़ी समस्याओं का समाधान निकाल सकते हैं। बलराम और मोहन की कहानी ने हमें यह सिखाया कि सहयोग और दोस्ती से हम सब मिलकर एक खुशहाल और मजबूत समाज बना सकते हैं।
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