रसोईघर की अनोखी दुनिया

एक छोटे से गांव कृष्णपुरा में एक राधा नाम की महिला रहती थी। राधा को खाना बनाना बहुत पसंद था और उसकी रसोई में हमेशा कुछ न कुछ चलता रहता था। सुबह-सुबह उसकी रसोई तरह-तरह के मसालों की खुशबू और सब्जियों के रंगों से भर जाती थी। लेकिन राधा की रसोई कोई आम रसोई नहीं थी। वह बोल सकती थी
रसोई में सभी बर्तन, मसाले और सब्जियाँ एक-दूसरे से बात करते थे। वे बहुत अच्छे दोस्त थे और हर दिन राधा की मदद करते थे। लेकिन वे एक-दूसरे से सिर्फ़ रात को बात करते थे, जब राधा सो जाती थी।

एक रात, जब राधा खाना बनाकर सो गई थी, तो रसोई में हलचल मच गई। चूल्हे पर रखे तवे ने सबसे पहले कहा, “आज का खाना बहुत स्वादिष्ट था। राधा ने मेरा बहुत अच्छा इस्तेमाल किया। मुझे हमेशा सब्ज़ियों के साथ खाना बनाना पसंद है।” तभी पास में रखे तवे ने कहा, हाँ, तुम सही कह रहे हो। लेकिन मुझे लगता है कि मैं सबसे ज़रूरी काम करता हूँ। रोटी बनाना सबसे ज़रूरी काम है। रोटी के बिना कोई भी खाना पूरा नहीं होता

इस पर पास में रखा छोटा चम्मच हंसा और बोला, “अरे, तुम दोनों अपने को सबसे महत्वपूर्ण समझते हो? असली स्वाद मेरे बिना नहीं आता। जब मैं मसाले मिलाता हूँ, तभी खाने में असली जादू आता है।”

पास में रखा मिर्च का डिब्बा तुरंत बोला, “तुम बिल्कुल सही कह रहे हो। मसाले खाने की जान होते हैं। अगर मैं थोड़ी सी मिर्च डाल दूँ, तो खाना तीखा हो जाता है और लोग तारीफ़ किए बिना नहीं रह पाते।”

इस पर नमक का डिब्बा नरम आवाज़ में बोला, “तुम सब ठीक कहते हो, लेकिन अगर मैं न रहूँ, तो तुम्हारा सारा जादू फीका पड़ जाएगा। नमक के बिना खाने में कोई स्वाद नहीं आता।”

सब चुप हो गए। नमक सही था। नमक के बिना खाना बेस्वाद हो गया। कढ़ाई, तवा, चम्मच, मसाले सभी ने माना कि नमक का अपना महत्व है।

तब पास में रखा धनिया पाउडर बोला, “हम सबका अपना काम है और हर कोई अपने काम में महत्वपूर्ण है। हम में से किसी एक के बिना खाना अधूरा रहेगा। हमें मिलकर काम करना चाहिए, तभी राधा इतना स्वादिष्ट खाना बना सकती है।”

तभी एक टोकरी से सब्ज़ियों की आवाज़ आई. टमाटर ने कुछ झुंझलाहट के साथ कहा, “तुम लोग अपनी तारीफ़ करने में लगे हो, लेकिन असली मेहनत तो हम करते हैं. हम सब्ज़ियाँ हैं, जिन्हें रोज़ काटा और पकाया जाता है. सब्ज़ियों के बिना तुम्हारा कोई भी खाना नहीं बन सकता.”

गाजर ने भी सहमति जताते हुए कहा, “तुम सच कह रहे हो टमाटर भाई. हम सब्ज़ियों के बिना रसोई नहीं चलेगी. और देखो, हम रोज़ काटे और पकाए जाते हैं, फिर भी हम शिकायत नहीं करते.”

प्याज़ और आलू भी सहमति में सिर हिलाने लगे. प्याज़ ने कहा, “खाने में मिठास और तीखापन लाना मेरा काम है. अगर मैं न रहूँ, तो खाने का स्वाद फीका रह जाएगा.”

सारे बर्तन, मसाले और सब्ज़ियाँ अपना महत्व बता रहे थे. रसोई में काफ़ी हलचल मची हुई थी. तभी एक बूढ़ा बर्तन, जो सबसे अनुभवी था, बोला, “सब अपना महत्व बता रहे हैं, लेकिन असली सवाल यह है कि सबसे महत्वपूर्ण कौन है?”

इस पर सभी चुप हो गए। किसी को कोई उत्तर नहीं सूझा। तभी चावल का एक छोटा दाना धीरे से बोला, “क्यों न हम कोई प्रतियोगिता करें? कल सुबह जब राधा खाना बनाएगी, तो हम सब अपनी-अपनी भूमिका निभाएंगे। जो सबसे महत्वपूर्ण साबित होगा, वही सबसे महत्वपूर्ण कहलाएगा।”

सभी ने इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। अब सभी अगली सुबह का इंतजार करने लगे, जब उन्हें साबित करना था कि सबसे महत्वपूर्ण कौन है।

अगली सुबह राधा उठी और हमेशा की तरह अपनी रसोई में आई। उसे नहीं पता था कि आज उसकी रसोई में कोई प्रतियोगिता चल रही है। उसने सबसे पहले प्याज काटना शुरू किया और फिर मसाले डालकर सब्ज़ियाँ पकाना शुरू किया।

बर्तन, मसाले और सब्ज़ियाँ राधा की हर हरकत पर ध्यान से नज़र रख रहे थे। तवा खुद को सबसे महत्वपूर्ण साबित करने की पूरी कोशिश कर रहा था। तवे ने रोटियाँ एकदम सही तरीके से फुलाईं। चमच्च ने मसालों को अच्छी तरह से मिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

जैसे ही राधा ने नमक का डिब्बा उठाया, सबकी नज़रें उस पर टिक गईं। नमक को अपनी अहमियत साबित करने का मौका मिल गया और वह खाने में घुलने-मिलने का इंतज़ार करने लगा।

राधा ने खाना बनाया और जैसे ही उसने पहला निवाला खाया, उसकी आँखें चमक उठीं। उसने खुद से कहा, “आज का खाना बहुत स्वादिष्ट है!”

रसोई की सारी चीज़ें एक-दूसरे को देखने लगीं। उन्हें समझ में आ गया कि कोई भी चीज़ अकेली सबसे महत्वपूर्ण नहीं होती। सभी के मिलजुलकर काम करने से ही स्वादिष्ट खाना बनता है।

बूढ़े बर्तन ने सबको संबोधित करते हुए कहा, “देखो, हम सबने अपना-अपना काम किया। यह साबित हो गया है कि कोई भी सबसे महत्वपूर्ण नहीं है। सभी मिलकर अच्छा खाना बनाते हैं।”

अब सभी बर्तन, मसाले और सब्ज़ियाँ एक-दूसरे का महत्व समझ गए थे। वे अब पहले की तरह खुद को सबसे महत्वपूर्ण साबित करने की कोशिश नहीं कर रहे थे। वे समझ गए थे कि रसोई में सबकी अपनी जगह होती है और सब मिलकर ही स्वादिष्ट खाना बना सकते हैं।

रसोई की इस अनोखी दुनिया में अब शांति थी। सब्ज़ियाँ, मसाले, बर्तन और चम्मच, सब अपना काम करने लगे थे।

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