एक छोटे से गांव में, मोहन नाम का एक चोर रहता था। मोहन हमेशा गांव के लोगों का सामान चुराने की फिराक में रहता था। गांव वाले उसकी चोरी से परेशान थे लेकिन उसे पकड़ नहीं पा रहे थे। मोहन बहुत चालाक था और हमेशा नए तरीके से चोरी करता था।
एक दिन, मोहन ने सुना कि गांव के सरपंच के घर में बहुत सारा सोना और पैसा है। उसने सोचा कि अगर वह सरपंच के घर में चोरी कर ले, तो वह बहुत अमीर हो जाएगा। उसने रात के समय सरपंच के घर में चोरी करने का प्लान बनाया।
रात को जब सब सो रहे थे, मोहन चुपचाप सरपंच के घर में घुस गया। वह घर के अंदर धीरे-धीरे चल रहा था कि तभी उसकी नजर एक छोटे बच्चे पर पड़ी। वह बच्चा जाग रहा था और मोहन को देखकर मुस्कुराया। बच्चे ने मोहन से पूछा, “आप कौन हैं और यहां क्या कर रहे हैं?”
मोहन ने सोचा कि अब यह बच्चा उसे नहीं पहचान सकेगा और ये सोचकर उसने झूठ बोलते हुए कहा, “मैं तो उनका एक दोस्त हूं और सरपंच जी ने मुझे यहां बुलाया है।” बच्चा बहुत समझदार था और उसने मोहन की बातों पर शक किया। उसने सोचा कि अगर मोहन सचमुच दोस्त होता तो वह इस तरह छुपकर नहीं आता।
उस बच्चे ने बड़ी ही चतुराई से कहा कि “अगर आप उनके दोस्त हैं, तो आइये मैं आपको जलपान परोस देता हूँ आपको भूख लगी होगी इसलिए आप पहले खाना खा लीजिये।” मोहन को लगा कि यह अच्छा मौका है, इसलिए उसने हां कह दिया। बच्चा रसोई में गया और एक थाली में खाना लेकर आया। लेकिन उस थाली में उसने एक विशेष तरह का रंग मिला दिया जो केवल सुबह के समय ही दिखाई देता था।
मोहन ने बिना कुछ सोचे-समझे खाना खा लिया और घर से बाहर निकल गया। अगले दिन सुबह, गांव में घोषणा की गई कि जिस किसी के हाथ में हरा रंग हो, वह चोर है। मोहन को रंग दिखाई देने लगा और वह पकड़ा गया। गांव वालों ने उसकी चालाकी की तारीफ की और मोहन को उसकी सजा दी।
इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि बुरे काम कभी नहीं छिपते और चालाकी से काम लेने वालों को भी कभी न कभी पकड़ा ही जाता है। सत्य और ईमानदारी की हमेशा जीत होती है।
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